Some Discussion on the Thought of Grammar

व्याकरण भाषा की संरचना तक सीमित नहीं होता,
ल्कि वह भाषा के पार भी जाता है..........

वृषभ प्रसाद जैन


व्याकरण के बारे में मान्यता है कि व्याकरण संरचना के विश्लेषण और योजननिर्माण के नियम बनाता है। अत: सामान्यत: यह सिद्धान्त बनता है कि व्याकरण संरचना तक सीमित होता है या सीमित रहता है। .......पर क्या व्याकरण के संबंध में उक्त सिद्धान्त को पूरी तरह सत्य माना जाना चाहिए या माना जा सकता है?--इस प्रश्न पर विचार करने के लिए हम निम्न संरचना पर विचार करते हैं। उदाहरण--
सुरेश घर से पढ़कर परीक्षा देने आया।

उक्त उदाहरण में तीन क्रियाएँ हैं- 1. पढ़ना, 2. परीक्षा देना और 3. आना। उक्त वाक्य को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि तीनों क्रियाआें की भूमिका उक्त वाक्य में एक-जैसी नहीं हैबल्कि तीनों क्रियाएँ अलग-अलग तरह की हैं। हम देखते हैं कि पहली क्रिया 'पढ़ना' जब पूरी हो जाती है, तब दूसरी क्रिया 'परीक्षा देने' के उददेश्य से 'घर से आने' की क्रिया सुरेश प्रारंभ करता है। इसप्रकार 'पढ़कर' क्रिया पूर्वकालिक कृदन्त है और उसकी संरचना में 'पढ़' धातु में 'कर' प्रत्यय लगा है। दूसरी क्रिया वाक्य की चरम क्रिया को करने के उद्देश्य को बताने वाली संरचना है और संयुक्त क्रिया के विकारी रूप में निर्मित तिर्यक्-संरचना है। तीसरी क्रिया 'आया' वाक्य की प्रमुख समापिका क्रिया है और 'आना' क्रिया का भूतकाल एक वचन का प्रयोग रूप है। कुल मिलाकर पहली क्रिया 'पढ़कर' पूर्वकालिक कृदन्त है, दूसरी क्रिया 'परीक्षा देना' वाक्य के उद्देश्य को बताने वाली है और कृदन्तीय रूप है और तीसरी क्रिया 'आना' का समापिका रूप है। अब एक और उदाहरण लगभग इसी तरह का लेते हैं। यथा-
सुरेश घर से चलकर परीक्षा देने आया।
 उपर्युक्त दूसरे वाक्य मे भी तीन क्रियाएँ हैं- 1. चलना, 2. परीक्षा देना और 3. आना। पहली क्रिया 'चलकर' में 'चल' मूलधातु और 'कर' प्रत्यय है, तब दूसरी क्रिया परीक्षा देने के उद्देश्य से सुरेश घर से 'आने' की क्रिया करता है। इस प्रकार 'पढ़कर' क्रिया पूर्वकालिक कृदन्त है और उसमें 'पढ़' धातु में 'कर' प्रत्यय लगा है। दूसरी क्रिया वाक्य के उद्देश्य को बताने वाली संरचना है, और संयुक्त क्रिया के रूप में तिर्यक्-संरचना वाली है। परन्तु दोनों वाक्य की पहली क्रियाएँ दिखने में सतही तौर पर एक-जैसी होते हुए भी एक-जैसी नहीं हैं, क्याेंकि पहले वाक्य की 'पढ़ना' क्रिया जब पूरी हुर्इ और तब 'आना'  क्रिया प्रारम्भ हर्इ। जबकि दूसरे वाक्य में 'चलना' रूप पहली क्रिया 'आना' क्रिया के साथ-साथ चलती रही, इसलिए पहले और दूसरे दोनों वाक्यों में पहली क्रिया में 'कर' प्रत्यय लगने के बाद भी दोनों क्रियाएँ समान नहीं हैं। पहले वाक्य में लगने वाली पहली क्रिया 'पढ़कर' पूर्वकालिक कृदन्त है और दूसरे वाक्य में 'चलकर' क्रिया पूर्वकालिक कृदन्त न होकर 'कर' प्रत्यय लगने के बाद भी आना क्रिया की विशेषता बताने के कारण क्रिया-विशेषण बन जाती है। इसलिए  उपर्युक्त दोनों उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि व्याकरण की कोटि का निर्धारण केवल संरचना-भर से या संरचना-भर के आधार पर नहीं होताबल्कि यथार्थ में घट रही घटना की समझ के विश्लेषण से होता है। इसलिए व्याकरण भाषा की संरचना तक सीमित नहीं होता, वह उसके परे या उसके पार तक जाता है। उपर्युक्त विचार को ही हम निम्नलिखित दो वाक्यों के माध्यम से देखने का और-प्रयास करते है-
1. 'सुरेश कानपुर से लखनऊ आता है।
2. 'वह बस कानपुर से लखनऊ आती है।
हम उपर्युक्त दोनो वाक्यों को विश्लेषित करते हैं कि पहले वाक्य का कर्ता 'सुरेश' है। जबकि दूसरे वाक्य का कर्ता 'वह बस' है और दोनों कर्ता कानपुर से लखनऊ आने की क्रिया सम्पन्न करते हैं।.........पर ध्यान से विचार करें तो इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दोनों वाक्यों के कर्ता सतही तौर पर कर्ता कहलाए जाने के बावजूद भी एक-जैसे कर्ता नही हैं; क्याेंकि पहले वाक्य का कर्ता 'सुरेश' कानपुर से लखनऊ आने की क्रिया स्वेच्छा से करता है, इसलिए वह वास्तव में कर्ता है--इसलिए उसे वास्तविक कर्ता भी कहा जा सकता है। जबकि दूसरे वाक्य का कर्ता 'वह बस' है। जोकि वास्तव में कर्ता नहीं है। वास्तव में 'वह' कर्म है, क्याेंकि वास्तविक जगत में 'चालक' उस बस को कानपुर से लखनऊ तक लाता है, इसलिए उस बस को लाने की क्रिया का वास्तविक कर्ता तो 'चालक' ही है।......पर 'वह बस' कानपुर से तो अवश्य लखनऊ आती है, इसप्रकार 'वह बस' वास्तव में तो 'कर्म' है। इसलिए आधुनिक और प्राचीन संस्कृत के वैयाकरणों ने उपर्युक्त दूसरे-जैसे वाक्याें के कर्ताओं को 'कर्मकर्ता' कहा। यही स्थिति निम्न दो वाक्यों में भी देखी जा सकती है। उदाहरण--
1.   चिडि़या उड़ रही है।
2. पतंग उड़ रही है।

इन दोनों वाक्यों में कर्ता 'चिडि़या' और 'पतंग' हैं, पर इन दोनों वाक्यों के कर्ता 'चिडि़या' और 'पतंग' की स्थिति ऊपर के दोनों वाक्यों-जैसी ही है और एक-जैसी नहीं है। इसप्रकार यह स्पष्ट होता है कि व्याकरण भाषा की संरचना तक ही सीमित नहीं रहता, वह अपनी व्याकरण-कोटि आदि के निर्धारण के लिए उसके परे यथार्थ तक भी जाता है।


Comments

  1. I can't read this article.
    Why not use Unicode Hindi?

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