Posts

Showing posts from 2020

संकट-मोचन हनुमान फ़ाउंडेशन

संकट-मोचन हनुमान फ़ाउंडेशन आज देश दुनियाँ जिस तरह से विकसित हो रही है और आगे बढ़ रही है , वैसे-वैसे उसके सामने दिनोंदिन अधिक संकट उपस्थित होते जा रहे हैं अर्थात् पहले की तुलना में आज व्यक्ति अधिक संकटग्रस्त हो रहा है या अपने को अधिक संकटग्रस्त होने का अनुभव कर रहा है , इसलिए पहले की तुलना में आज समाज में संकट-मोचक की आवश्यकता अधिक अनुभव की जा रही है। इधर राजनैतिक परिदृश्य में जो हमारे राजनेता हैं , उनमें से अधिकांश अपने को संकट-मोचक के रूप में उपस्थित करने में भी लग गये हैं , जबकि कोई सामान्य मनुष्य भला संकट-मोचक कैसे हो सकता है, ऐसी स्थिति उनकी न कभी थी और न है। हमारी परंपरा में संकटमोचक श्री हनुमान जी नायक के रूप में रहे हैं , नेता के रूप में नहीं , आज समाज में से नायक लगभग ग़ायब हैं, हमें इस संकट मोचन फ़ाउंडेशन के माध्यम से नायकों और नायकत्व की पुनर्स्थापना   करनी है या हम पुन:स्थापना करना चाहते हैं। श्री हनुमान जी महाराज हमारी परम्परा में परम संरक्षक और परम सेवक के रूप में भी स्थापित हैं। हमारी परंपरा में जो श्री हनुमान जी का उल्लेख आता है , उसमें श्री राम-हनुमान स

हिंदी क्रिया व्याकरण पर कुछ विचार

हिंदी क्रियाओं की कुछ विशेषताएँ ·        वृषभ प्रसाद जैन हर भाषा की संरचनाओं की कुछ-न-कुछ विशेषता होती जरूर है, यह विलक्षणता या   विशेषता ही उस भाषा को अपनी पृथक् पहचान देती है, इस आलेख में हम हिंदी के समकालीन प्रयोग की क्रियाओं की कुछ विशेषताओं की चर्चा करेंगे ।  इस आलेख का प्रारम्भ वर्षों पहले समकालीन हिंदी व्याकरण परियोजना जो महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में हमने प्रारम्भ की थी, जिसे बाद के प्रशासन ने अज्ञात कारणों से आगे न चलाया, क्रिया को लेकर डॉक्टर श्रीरमण मिश्र जी और डॉक्टर  अनिल कुमार पाण्डेय जी के साथ कुछ काम किया था, मैं इन दोनों गंभीर विद्वानों और विश्वविद्यालय का बहुत आभारी हूँ कि उसने इस तरह नये ढंग से हिंदी की मौलिक प्रकृति को समझने का मुझे अवसर दिया था, स्मरण के आधार पर उस विचार चर्चा के कुछ अंशों पर मैं यहाँ प्रस्तुति कर रहा हूँ, ताकि विचार जीवित रहे और श्रम निरर्थक न जाए और चाहें तो, अगली पीढी के लोग इसे आगे बढ़ाए ँ ।  वैसे इस व्याकरण-विचार-यात्रा में कुछ अन्य मित्र भी शामिल रहे, जिनमें कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं-- डॉक्टर अशोक नाथ त्र

भारतीय भाषाओं के व्याकरण पर कुछ विचार

भारतीय भाषाओं के व्याकरण पर कुछ विचार आज शुक्रवार 14 फ़रवरी 2020 की पत्रिका के प्रथम पृष्ठ से प्रथम समाचार के कुछ अंश की भाषा का थोड़ा विश्लेषण करते हैं— शीर्षक है—“स्टील स्ट्रक्चर में वेल्डिंग फेलियर के कारण टूटा एफओबी” । यह शीर्षक चार पदों वाली संरचना है। पहला पद “स्टील स्ट्रक्चर में” अधिकरण संरचना है और उसके तीनों घटकों में से पहले दो घटक अँग्रेज़ी शब्दकोश के हैं, केवल “में” परसर्ग या विभक्ति चिह्न हिन्दी से है और जो इस पद को अधिकरण-वाचक बनाता है। दूसरा पद है— “वेल्डिंग फेलियर के कारण”, इसके भी पहले ही दोनों शब्द अंग्रेज़ी से या अंग्रेजी के हैं, इन दोनों शब्दों को अपादान संरचना बनाने वाला केवल पदांश “के कारण” हिन्दी से या हिन्दी का है और तीसरा पद “टूटा” जो क्रिया पद है, भी हिंदी से ही है और फिर चौथे पद “एफओबी” की वाक्य की “टूटा” क्रिया के होने में कोई भूमिका नहीं है, परंतु व्याकरण की दृष्टि से उसे कर्ता कहा जाता है। यह बात इस तथ्य को कहती है कि हर वाक्य का कर्ता उस वाक्य की क्रिया का साक्षात् स्वनियंत्रित क्रिया को कराने वाला कर्ता नहीं होता, इसलिए क्रियाओं के क