Bhaashaa Mein Saahacarya Association in Language

भाषा में साहचर्य
वृषभ प्रसाद जैन

मेरे वि़द्यागुरु पद्मभूषण आचार्य पण्डित विद्यानिवास मिश्र जी अक्सर यह कहते थे कि किसी भी भाषा को और उसके व्याकरण को सीखने के लिए भाषा में व्याप्त या भाषा की प्रकृति में व्याप्त साहचर्यको जानना चाहिए। अब प्रश्न उठेगा कि साहचर्यक्या है?......... भाषा में रहने वाली भाषिक इकाइयों का प्रयोग चाहे जहाँ या चाहे जिसके साथ नहीं होता। भाव यह है कि कौन-सी क्रिया किस अवस्था वाले कर्ता के साथ प्रयुक्त होती है या किस प्रकार की विशेष क्रिया के साथ कौन-सा कर्ता प्रयुक्त होता है, -यह जानना ही कर्ता और क्रिया के साहचर्य को जानना है या क्रिया और कर्ता के साहचर्य को जानना है। कोई भी भाषा स्वछन्द बिहार की अनुमति नहीं देती, वह अपने घटकों के लिए यह निर्धारित करके चलती है कि कौन-सी इकाई किस घटक विशेष के साथ या किन्हीं दूसरे घटकों के साथ किन विशेष परिस्थितियों में प्रयुक्त होती है। भाषा के सभी घटकों या सभी इकाइयों के सभी घटकों के सन्दर्भों की स्थिति विशेष को जानना, भाषा के घटकों के साहचर्य को जानना है। उदाहरण के लिए हिंदी की एक क्रिया भड़कनाको लेते हैं। अब देखना यह है कि यह भड़कनाक्रिया किस-किस प्रकार के कर्ताओं को लेती है या के साथ आती है। आज के दैनिक जागरण 27.3.2014 के पहले पेज का प्रमुख शीर्षक है लापरवाही से भड़का दंगा’, तो बात साफ हुई कि भडकनाक्रिया के साथ दंगा कर्ता में रूप में आ सकता है। .......पर क्या 1. पानी भड़का, या 2. बर्फ भड़की, या 3. गले का हार भड़का; आदि वाक्य हिंदी के स्वीकृत वाक्य हो सकते हैं?....... मुझे लगता है कि इन 1, 2, 3 वाक्यों में से कोई भी वाक्य हिंदी का स्वीकृत वाक्य नहीं है। इसका मतलब साफ हुआ कि भड़कनाक्रिया के साथ बर्फ की, पानी की, गले के हार की, कर्ता के रूप में हिंदी में स्वीकृत नहीं है। इसीलिए यह-सब भडकनाक्रिया के साहचर्य में नहीं हैं। भड़कनाक्रिया के साथ प्रमुख रूप में जो घटक आ सकते हैं, वे हैं- क्रोध, आग, व्यक्ति-विशेष, समूह-विशेष आदि-आदि। जैसे-
1.    इस गाँव में आग भड़की।
2.    उसका क्रोध भड़का।
3.    कैकेयी की बात सुनते ही राजा दशरथ भड़के (व्यक्तिवाचक)।
4.    मैं, तुम, आप (कोई भी सर्वनाम) भड़के।
5.      अफवाह फैलते ही भीड़ (समूह वाचक) भड़की।
ऐसे ही हिंदी की कुछ-और क्रियाओं को लेकर अब बात करते हैं- फड़कना’, इसका साहचर्य है आँख के साथ, हाथ के साथ, जंघा के साथ, भौंह के साथ, आदि-आदि।
एक और क्रिया है- जारी करना’ -इसके साथ आ सकते हैं आदेश, फरमान, नोटिस, पासपोर्ट, टिकट, वीजा, रसीद आदि-आदि। यथा- आदेश जारी करना, फरमान जारी करना, नोटिस जारी करना, पासपोर्ट जारी करना, टिकट जारी करना, वीजा जारी करना, रसीद जारी करना, आदि-आदि में।
एक और क्रिया है- पूरी करना। अब देखिये क्रिया पूरी करनाकिन-किन शब्दों के साथ प्रयुक्त होती है ज़रूरतें, माँगें, शर्तें, आवश्कताएँ, जिम्मेदारी, आदि-आदि। यथा- ज़रूरतंे पूरी करना, माँगंे पूरी करना, शर्तें पूरी करना, आवश्यकताएँ पूरी करना, जिम्मेदारी पूरी करना, आदि-आदि में।
एक और क्रिया है- हासिल करना’ -इसके साथ जो शब्द आते हैं, वे हैं- ऊर्जा, कुव्वत, शिक्षा, सहानुभूति, शिल्प, दौलत, आदि-आदि। जैसे- ऊर्जा हासिल करना, कुव्वत हासिल करना, शिक्षा हासिल करना, सहानुभूति हासिल करना, शिल्प हासिल करना, दौलत हासिल करना, आदि-आदि में।
एक और क्रिया है-अच्छा होना’ -इसके साथ आ सकते हैं- सेहत, माली हालत, पहले से, आदि-आदि। जैसे- सेहत अच्छा होना, माली हालत में अच्छा होना, पहले से अच्छा होना, आदि-आदि में।
अब एक और क्रिया अदा करनाको लेते हैं- इसके साथ शब्द जो आ सकते हैं, वे हैं- कर्ज़ा, शुक्रिया, बिल, किराया, आदि-आदि। जैसे- कर्ज़ा अदा करना, शुक्रिया अदा करना, बिल अदा करना, किराया अदा करना, आदि-आदि में।
एक क्रिया है रोना। इस क्रिया का कर्ता कोई प्राणवान् और संवेदनशील व्यक्ति या उसका वाचक सर्वनाम ही हो सकता है, अन्य कोई नहीं तथा यह रोनाक्रिया दु:ख-वाचक, पीड़ा-वाचक या अत्यधिक प्रसन्नता-वाचक परिस्थित में ही घटती है, इसलिए इसप्रकार की स्थिति-वाचक कोई अधिकरण संरचना भी आ सकती है। यह है रोनाक्रिया का साहचर्य। उदाहरण -
1.    पुत्र पिता की मृत्यु पर रोया।
2.    गुरु के पीटने पर छात्र रोया।
3.    कोई वारिस न था, नाती के जन्म होने पर दादी हर्ष से रो पड़ी, उसकी आँखो में आँसू छलक आए।
एक क्रिया है जाना। हिन्दी की जानाक्रिया ऐसी है कि वह सभी प्रकार की कारक संरचनाओं को लेती है। भाव यह है कि हन्दी की जानाक्रिया के साथ सभी प्रकार की कारक संरचनाओं का साहचर्य स्वीकृत है।
मोहन रासन और पैसा लाने के लिए बस से कानपुर से अपने पिता जी के गाँव सोहनपुर रात में जा रहा है।
    अब देखिए ऊपर के इस वाक्य में कर्ता से लेकर अधिकरण तक की वाचक सभी संरचनाएँ आई हैं, यहाँ तक कि इसमें सम्बन्ध-वाचक संरचना भी प्रयुक्त हुई है, पर इसप्रकार की सभी संरचनाएँ इससे पहले उल्लखित सभी क्रियाओं के साथ नहीं  आ सकतीं, क्योंकि हिन्दीं भाषा की प्रकृति में विद्यमान साहचर्य उस तरह की अनुमति नहीं देता। हिन्दीं वाक्य के व्याकरण में क्रिया की भौतिक या परोक्ष रूप में उपस्थिति अनिवार्य होती है, इसीलिए कहा तो यह भी जाता है कि हिन्दी की क्रिया नहीं, तो हिन्दीं का वाक्य भी नहीं, इसीलिए मान्यता है कि हिन्दी की क्रिया में ही हिन्दी का वाक्य गर्भित रहता है। यही कारण है कि हिन्दी व्याकरण को जानने के लिए जरूरी है कि हिन्दी क्रिया के साहचर्य को हम जानें।
ऐसे ही हिंदी के टिप्पणीशब्द के विशेषण बन सकते हैं- सख्त, मीठी, कड़वी, मुलायम, तीखी, टेढ़ी, कमजोर और हल्की आदि या इस तरह के अन्य शब्द।
आज जरूरत इस बात की है कि हिंदी भाषा के भीतर उसके भाषिक पाठ में  पाठ के प्रत्येक स्तर के घटकों को देखते हुए या उन्हें रेखांकित करते हुए हम उनके साहचर्य को भी रेखंाकित कर सकंे और उस साहचर्य को हिंदी के भाषा-व्याकरण को सीखने वालों के मन में उतार सकें, पर वह उतारा तब जा सकेगा, जब हमें यह पता हो कि हिंदी भाषा के बनाने वाले जितने भी घटक हैं, वे-सब घटक किन-किन परिस्थितियों में किन-किन स्तरों पर किन-किन क्रियाओं के साथ आते हैं और यदि हम यह भी रेखांंिकत कर सकें कि यह विशेष घटक इन-इन के साथ नहीं आता, या इन-इन क्रियाओं के साथ ये घटक नहीं आते हैं, तो हिंदी भाषा सीखने वाला इस भाषा में स्वीकृत प्रयोग को ही सीखेगा और हिंदी भाषा में जो स्वीकृत प्रयोग नहीं हैं, उन्हें नकार सकने में भी समर्थ हो सकेगा अर्थात् वह हिंदी भाषा के अप्रयोग से भी अपने को पूरी तरह रोक सकेगा।

भाषा में साहचर्य
वृषभ प्रसाद जैन

मेरे वि़द्यागुरु पद्मभूषण आचार्य पण्डित विद्यानिवास मिश्र जी अक्सर यह कहते थे कि किसी भी भाषा को और उसके व्याकरण को सीखने के लिए भाषा में व्याप्त या भाषा की प्रकृति में व्याप्त साहचर्यको जानना चाहिए। अब प्रश्न उठेगा कि साहचर्यक्या है?......... भाषा में रहने वाली भाषिक इकाइयों का प्रयोग चाहे जहाँ या चाहे जिसके साथ नहीं होता। भाव यह है कि कौन-सी क्रिया किस अवस्था वाले कर्ता के साथ प्रयुक्त होती है या किस प्रकार की विशेष क्रिया के साथ कौन-सा कर्ता प्रयुक्त होता है, --यह जानना ही कर्ता और क्रिया के साहचर्य को जानना है या क्रिया और कर्ता के साहचर्य को जानना है। कोई भी भाषा स्वछन्द बिहार की अनुमति नहीं देती, वह अपने घटकांे के लिए यह निर्धारित करके चलती है कि कौन-सी इकाई किस घटक विशेष के साथ या किन्हीं दूसरे  घटकों के साथ किन विशेष परिस्थितियों में प्रयुक्त होती है। भाषा के सभी घटकों या सभी इकाइयों के सभी घटकों के सन्दर्भों की स्थिति विशेष को जानना, भाषा के घटकों के साहचर्य को जानना है। उदाहरण के लिए हिंदी की एक क्रिया भड़कनाको लेते हैं। अब देखना यह है कि यह भड़कनाक्रिया किस-किस प्रकार के कर्ताओं को लेती है या के साथ आती है। आज के दैनिक जागरण 27.3.2014 के पहले पेज का प्रमुख शीर्षक है लापरवाही से भड़का दंगा’, तो बात साफ हुई कि भडकनाक्रिया के साथ दंगा कर्ता में रूप में आ सकता है। .......पर क्या 1. पानी भड़का, या 2. बर्फ भड़की, या 3. गले का हार भड़का; आदि वाक्य हिंदी के स्वीकृत वाक्य हो सकते हैं?....... मुझे लगता हैं कि इन 1, 2, 3 वाक्यों में से कोई भी वाक्य हिंदी का स्वीकृत वाक्य नहीं है। इसका मतलब साफ हुआ कि भड़कनाक्रिया के साथ बर्फ की, पानी की, गले के हार की, कर्ता के रूप में हिंदी में स्वीकृत नहीं है। इसीलिए यह-सब भडकनाक्रिया के साहचर्य में नहीं हैं। भड़कनाक्रिया के साथ प्रमुख रूप में जो घटक आ सकते हैं, वे हैं- क्रोध, आग, व्यक्ति-विशेष, समूह-विशेष आदि-आदि। जैसे-
1.    इस गाँव में आग भड़की।
2.    उसका क्रोध भड़का।
3.    कैकेयी की बात सुनते ही राजा दशरथ भड़के (व्यक्तिवाचक)।
4.    मैं, तुम, आप (कोई भी सर्वनाम) भड़के।
5.      अफवाह फैलते ही भीड़ (समूह वाचक) भड़की।
ऐसे ही हिंदी की कुछ-और क्रियाओं को लेकर अब बात करते हैं- फड़कना’, इसका साहचर्य है आँख के साथ, हाथ के साथ, जंघा के साथ, ौंह के साथ, आदि-आदि।
एक और क्रिया है- जारी करना’ -इसके साथ आ सकते है आदेश, फरमान, नोटिस, पासपोर्ट, टिकट, वीजा, रसीद आदि-आदि। यथा- आदेश जारी करना, फरमान जारी करना, नोटिस जारी करना, पासपोर्ट जारी करना, टिकट जारी करना, वीजा जारी करना, रसीद जारी करना, आदि-आदि में।
एक और क्रिया है- पूरी करना। अब देखिये क्रिया पूरी करनाकिन-किन शब्दों के साथ प्रयुक्त होती है ज़रूरतें, माँगें, शर्तें, आवश्कताएँ, जिम्मेदारी, आदि-आदि। यथा- ज़रूरतें पूरी करना, माँगें पूरी करना, शर्तें पूरी करना, आवश्यकताएँ पूरी करना, जिम्मेदारी पूरी करना, आदि-आदि में।
एक और क्रिया है- हासिल करना’ -इसके साथ जो शब्द आते हैं, वे हैं- ऊर्जा, कुव्वत, शिक्षा, सहानुभूति, शिल्प, दौलत, आदि-आदि। जैसे- ऊर्जा हासिल करना, कुव्वत हासिल करना, शिक्षा हासिल करना, सहानुभूति हासिल करना, शिल्प हासिल करना, दौलत हासिल करना, आदि-आदि में।
एक और क्रिया है-अच्छा होना’ -इसके साथ आ सकते हैं- सेहत, माली हालत, पहले से, आदि-आदि। जैसे- सेहत अच्छा होना, माली हालत में अच्छा होना, पहले से अच्छा होना, आदि-आदि में।
अब एक और क्रिया अदा करनाको लेते हैं- इसके साथ शब्द जो आ सकते हैं, वे हैं- कर्ज़ा, शुक्रिया, बिल, किराया, आदि-आदि। जैसे- कर्ज़ा अदा करना, शुक्रिया अदा करना, बिल अदा करना, किराया अदा करना, आदि-आदि में।
एक क्रिया है रोना। इस क्रिया का कर्ता कोई प्राणवान् और संवेदनशील व्यक्ति या उसका वाचक सर्वनाम ही हो सकता है, अन्य कोई नहीं तथा यह रोनाक्रिया दःुख-वाचक, पीड़ा-वाचक या अत्यधिक प्रसन्नता-वाचक परिस्थित में ही घटती है  इसलिए इसप्रकार की स्थिति-वाचक कोई अधिकरण संरचना भी आ सकती है। यह है रोनाक्रिया का साहचर्य। उदाहरण -
1.    पुत्र पिता की मृत्यु पर रोया।
2.    गुरु के पीटने पर छात्र रोया।
3.    कोई वारिस न था, नाती के जन्म होने पर दादी हर्ष से रो पड़ी, उसकी आँखो में आँसू छलक आए।
एक क्रिया है जाना। हिन्दी की जानाक्रिया ऐसी है कि वह सभी प्रकार की कारक संरचनाओं को लेती है। भाव यह है कि हन्दी की जानाक्रिया के साथ सभी प्रकार की कारक संरचनाओं का साहचर्य स्वीकृत है।
मोहन रासन और पैसा लाने के लिए बस से कानपुर से अपने पिता जी के गाँव सोहनपुर रात में जा रहा है।
    अब देखिए ऊपर के इस वाक्य में कर्ता से लेकर अधिकरण तक की वाचक सभी संरचनाएँ आई हैं, यहाँ तक कि इसमें सम्बन्ध-वाचक संरचना भी प्रयुक्त हुई है, पर इसप्रकार की सभी संरचनाएँ इससे पहले उल्लखित सभी क्रियाओं के साथ नहीं  आ सकतीं, क्योंकि हिन्दीं भाषा की प्रकृति में विद्यमान साहचर्य उस तरह की अनुमति नहीं देता। हिन्दीं वाक्य के व्याकरण में क्रिया की भौतिक या परोक्ष रूप में उपस्थिति अनिवार्य होती है, इसीलिए कहा तो यह भी जाता है कि हिन्दी की क्रिया नहीं, तो हिन्दीं का वाक्य भी नहीं, इसीलिए मान्यता है कि हिन्दी की क्रिया में ही हिन्दी का वाक्य गर्भित रहता है। यही कारण है कि हिन्दी व्याकरण को जानने के लिए जरूरी है कि हिन्दी क्रिया के साहचर्य को हम जानें।
ऐसे ही हिंदी के टिप्पणीशब्द के विशेषण बन सकते हैं -- सख्त, मीठी, कड़वी, मुलायम, तीखी, टेढ़ी, कमजोर और हल्की आदि या इस तरह के अन्य शब्द।

आज जरूरत इस बात की है कि हिंदी भाषा के भीतर उसके भाषिक पाठ में पाठ के प्रत्येक स्तर के घटकों को देखते हुए या उन्हें रेखांकित करते हुए हम उनके साहचर्य को भी रेखांकित कर सकें और उस साहचर्य को हिंदी के भाषा-व्याकरण को सीखने वालों के मन में उतार सकें, पर वह उतारा तब जा सकेगा, जब हमें यह पता हो कि हिंदी भाषा के बनाने वाले जितने भी घटक हैं, वे-सब घटक किन-किन परिस्थितियों में किन-किन स्तरों पर किन-किन क्रियाओं के साथ आते हैं और यदि हम यह भी रेखांकित कर सकें कि यह विशेष घटक इन-इन के साथ नहीं आता, या इन-इन क्रियाओं के साथ ये घटक नहीं आते हैं, तो हिंदी भाषा सीखने वाला इस भाषा में स्वीकृत प्रयोग को ही सीखेगा और हिंदी भाषा में जो स्वीकृत प्रयोग नहीं हैं, उन्हें नकार सकने में भी समर्थ हो सकेगा अर्थात् वह हिंदी भाषा के अप्रयोग से भी अपने को पूरी तरह रोक सकेगा।

Comments

  1. सर
    प्रणाम
    साहचर्य भाषा के प्रयोक्ता के social, cultural variables पर आधारित होता है।इसलिए साहचर्य के कई स्वरूप हो सकते हैं....
    यथा
    आज संविधान की आत्मा रो रही है।
    अब संविधान तो कोई जैविक वस्तुसत्ता है नहीं।
    परन्तु यह सार्थक लगता है।
    ऐसे बहुत से प्रश्न मेरे मन में उठ रहे हैं।
    समाधान करना चाहें।

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  2. सर
    प्रणाम
    साहचर्य भाषा के प्रयोक्ता के social, cultural variables पर आधारित होता है।इसलिए साहचर्य के कई स्वरूप हो सकते हैं....
    यथा
    आज संविधान की आत्मा रो रही है।
    अब संविधान तो कोई जैविक वस्तुसत्ता है नहीं।
    परन्तु यह सार्थक लगता है।
    ऐसे बहुत से प्रश्न मेरे मन में उठ रहे हैं।
    समाधान करना चाहें।

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  3. प्रियवर डॉक्टर आदित्य जी,
    आपका प्रश्न व्याकरण की मूल संकल्पना से जुड़ा हुआ प्रश्न है।
    यहाँ दो बातें विचारणीय हैं कि हम व्याकरण किसका बनाने जा रहे हैं--- सामान्य भाषा प्रयोग का या-फिर आलंकारिक भाषा प्रयोग का या जिसे कविता की भाषा कहते हैं उसका। दोनों के व्याकरण एक जैसे नहीं हो सकते। चूँकि दोनों की प्रकृति अलग अलग है, अतः दोनों के व्याकरण भी अलग अलग तरह के होंगे। आपके द्वारा प्रस्तुत किये गए वाक्य "आज संविधान की आत्मा रो रही है।" के कर्ता का मूल आधार संविधान कोई प्राणवान इकाई वास्तविक जगत में नहीं है, तब फिर उसे संवेदनशील कैसे माना जाए ?..... संभवतः आपका प्रश्न यहां है।

    वास्तव में आपके द्वारा प्रस्तुत किये गए वाक्य "आज संविधान की आत्मा रो रही है।"के गम्य अर्थ पर विचार करें, तो यह बात साफ होती है कि इसका अर्थ है कि "आज की स्थिति को देखकर संविधान बनाने वालों की आत्माएं रो रही हैं। " ... चूँकि यह अर्थ साक्षात अर्थ अर्थात अभिधेयार्थ नहीं है और है यह व्यंग्यार्थ। सामान्यार्थ की दृष्टि से यह वाक्य गलत है, क्योंकि रोना क्रिया का कर्ता जैविक प्राणवान ही हो सकता है और वह इस वाक्य में है नहीं। चूँकि यह वाक्य प्रयोग में है, इसलिए इसे ऐसे ही गलत माना नहीं जाना चाहिए। वास्तव में ऐसे वाक्यों में परोक्ष व्यंजित कर्ता का आरोपण होता है और ऐसे आलंकारिक प्रयोग सामान्य अनपढ़ा व्यक्ति भी करता देखा गया है, इसीलिए यह भी माना जाता है कि कविता संवेदनशील के द्वारा जन्य व ग्राह्य होती है, पर उसके ऐसे प्रयोग भी सामान्य भाषायी प्रयोग नहीं होते, वे तो आलंकारिक ही होते हैं, भले वह अनपढ़ा क्यों न हो। इसलिए सामान्य भाषा में रहने वाले साहचर्य के आधार पर आलंकारिक भाषा को नहीं देखना चाहिए। सामान्य भाषा के व्याकरण पर विचार करते समय केवल एकार्थी अर्थात साक्षात अर्थ वाली संरचनाएँ ही लेनी चाहिए।

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    1. आलंकारिक यथा व्यंग्य व लक्ष्य अर्थ वाली संरचाओं का व्याकरण अलग प्रकार का होगा और उसके पैमाने भी अलग तरह के होंगे।

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  4. गुरु से कोई प्रॉब्लम पूछा जाए .... और गुरु उठाकर पटकनी दे मारे
    तो उठकर कपड़ा झाड़ते हुए मुँह से यही निकलता है ... पा गए...पा गए (ज्ञान पा गए)
    सादर प्रणाम

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  5. प्रिय डॉ. आदित्य प्रताप सिंह जी,
    कल शाम मैं पत्नी श्रीमती संध्या जैन के साथ घर के बगल वाले पार्क में टहल रहा था और आप की चर्चा भी हो रही थी। उसी चर्चा में हमारी भाषा और व्याकरण की चर्चा को लेकर कई प्रश्न उभरे, जिनके परिणाम निम्न प्रकार हैं-
    1. विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भों में ही भाषाओं के विकल्प उभरते हैं अर्थात् प्रयोग में आते हैं, उनसे कटकर नहीं, इसीलिए भाषाओं में ऐच्छिकता है, पर सामाजिक संदर्भ आश्रितता प्रमुख रूप से जरूरी है।
    2. उपर्युक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर व्याकरण निर्देश एवं संदेश-परक भाषा की संरचनाओं के नियंत्रण का लेखा-जोखा नियमों के माध्यम से प्रस्तुत करता है, कुल मिलाकर सामान्य भाषायी व्याकरण एकार्थी संरचनाओं के विश्लेषण और सृजन के नियमन का काम करता है ।
    3. भाषा प्रयोग में कई वाक्यात्मक प्रयोग ऐसे होते हैं, जो अपने भीतर कई स्तरों पर वाक्य संरचनाओं को अंतर्भुक्त (embedded sentences) किये होते हैं। जैसे - बस कानपुर जा रही है।
    4. इस उपर्युक्त वाक्य में व्यक्त संरचना में जाती हुयी बस दिख रही है, पर वास्तव में बस जा नहीं सकती, क्योंकि 'जाना' क्रिया के साहचर्य में बस में स्वयं जाने की क्षमता नहीं है, अतः उपर्युक्त व्यक्त वाक्य के भीतर प्रमुख रूप में निम्न दो वाक्य अंतर्भुक्त हैं और 'बस' जो कर्ता के रूप में दिख रही, वह वास्तविक कर्ता नहीं है, वास्तविक कर्ता तो निम्न वाक्यों में क्रमशः व्यक्त हैं और बस तो वस्तुतः कर्म है।
    5. अंतर्भुक्त वाक्य हैं-- 1- चालक (ड्राइवर) बस को कानपुर ले जा रहा है
    २. लोग कानपुर जा रहे हैं।
    यहाँ बस को ले जाने की क्रिया का कर्ता जो दिख रहा है, पर वह भी बस को ले जाने की क्रिया का पूरी तरह स्वतन्त्र कर्ता नहीं है, बस का कानपुर जाना या तो दोनों या फिर निम्न अंतर्भुक्त वाक्यों में से कम से कम एक पर आधारित है, वे दोनों अंतर्भुक्त वाक्य हैं-- 1- चालक निश्चित समय पर अधिकारी के निर्देश से बस को कानपुर ले जा रहा है; 2- लोग कानपुर जा रहे हैं।
    6. इसलिए 'बस' का उपर्युक्त दोनों या दोनों में से कम से कम एक अंतर्भुक्त वाक्य की क्रिया पर आधारित है, इसलिए मुझे तो लगता है कि भाषा में व्याप्त साहचर्य को भी कई स्तरों पर देखना होगा या देखा जाना चाहिए। व्यक्त संरचनाओं में दिखने वाला साहचर्य और व्यक्त संरचनाओं में अंतर्भुक्त वाक्यों में निहित साहचर्य। बात इतनी ही नहीं, बल्कि उस साहचर्य की परस्पर आश्रितता भी देखी जानी चाहिए,------ और तभी सतही स्तर पर व्यक्त भाषा में निहित साहचर्य के पूरे परिदृश्य को समझा जा सकता है।
    7. आपने यदि ऐसा गंभीर प्रश्न न उठाया होता, तो यह विचार उठता ही नहीं। मैं आभारी हूँ आपका इस बात के लिए कि आपने खूब विचारकर समस्या सामने रखी और तब उस समस्या के कारण ही मैं उपर्युक्त विचार कर सका। अब आप-जैसे गंभीर अध्येता मुश्किल से मिलते हैं। आप कानून के विशेषज्ञ तो हैं ही, भाषा पर भी गंभीर प्रश्न उठाते हैं, इसलिए मैं आपका उपकृत हूँ। आप खूब बढ़ें, आपकी छात्र-संतति भी खूब पढे़ और आप से सीखे। आपका यश दिग-दिगंत व्यापी हो, कुल मिलाकर आपका जीवन ज्ञान और विद्या की आराधना को निरन्तर समर्पित होता रहे व मेरा संबध भी आप के साथ चलता रहे, जिससे भाषा और व्याकरण का शास्त्र निरन्तर पल्लवित होता रहे ।

    सस्नेह
    आपका ही
    वृषभ प्रसाद जैन

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  6. भाषा विज्ञान और व्याकरण में मेरी गति नहीं है पर आपके एक उदाहरण है"कोई वारिस न था, नाती के जन्म होने पर दादी हर्ष से रो पड़ी , उसकी आँखों में र्आँसू छलक आए ।"इस उदाहरण से एक बार पुनः यह लगा कि सामाजिक विधान कैसे दिमाग में भीतर तक पैठ जाता है और अनायास भाषिक व्यवहार में प्रकट होता है । अनायास ही उसे पुष्टि भी मिलती है ।
    बहरहाल " भाषिक साहचर्य " संबंधी विचार आगे गद्य लिखते समय सावधान करेगा । कविता की भाषा अपना रूप स्वयं गढ़ती है । सादर _/\_ प्रणाम ।

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  7. भाषा विज्ञान और व्याकरण में मेरी गति नहीं है पर आपके एक उदाहरण है"कोई वारिस न था, नाती के जन्म होने पर दादी हर्ष से रो पड़ी , उसकी आँखों में र्आँसू छलक आए ।"इस उदाहरण से एक बार पुनः यह लगा कि सामाजिक विधान कैसे दिमाग में भीतर तक पैठ जाता है और अनायास भाषिक व्यवहार में प्रकट होता है । अनायास ही उसे पुष्टि भी मिलती है ।
    बहरहाल " भाषिक साहचर्य " संबंधी विचार आगे गद्य लिखते समय सावधान करेगा । कविता की भाषा अपना रूप स्वयं गढ़ती है । सादर _/\_ प्रणाम ।

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