हिंदी क्रिया व्याकरण पर कुछ विचार




हिंदी क्रियाओं की कुछ विशेषताएँ
·       वृषभ प्रसाद जैन

हर भाषा की संरचनाओं की कुछ-न-कुछ विशेषता होती जरूर है, यह विलक्षणता या  विशेषता ही उस भाषा को अपनी पृथक् पहचान देती है, इस आलेख में हम हिंदी के समकालीन प्रयोग की क्रियाओं की कुछ विशेषताओं की चर्चा करेंगे इस आलेख का प्रारम्भ वर्षों पहले समकालीन हिंदी व्याकरण परियोजना जो महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में हमने प्रारम्भ की थी, जिसे बाद के प्रशासन ने अज्ञात कारणों से आगे न चलाया, क्रिया को लेकर डॉक्टर श्रीरमण मिश्र जी और डॉक्टर अनिल कुमार पाण्डेय जी के साथ कुछ काम किया था, मैं इन दोनों गंभीर विद्वानों और विश्वविद्यालय का बहुत आभारी हूँ कि उसने इस तरह नये ढंग से हिंदी की मौलिक प्रकृति को समझने का मुझे अवसर दिया था, स्मरण के आधार पर उस विचार चर्चा के कुछ अंशों पर मैं यहाँ प्रस्तुति कर रहा हूँ, ताकि विचार जीवित रहे और श्रम निरर्थक न जाए और चाहें तो, अगली पीढी के लोग इसे आगे बढ़ाए  वैसे इस व्याकरण-विचार-यात्रा में कुछ अन्य मित्र भी शामिल रहे, जिनमें कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं-- डॉक्टर अशोक नाथ त्रिपाठी, श्री गिरीश चन्द्र पाण्डेय, सुश्री गुंजन जैन, डॉक्टर रामानुज अस्थाना, डॉक्टर अयाज अहमद व अन्य कुछ-और छात्र-मित्र भी। मैं इन सब का भी अपने प्रति उपकार मानता हूँ, पर इनकी भूमिका अन्य विविध पक्षों को लेकर रही       
क्रियाओं में मुहावरात्मकता
दिनांक 9 अप्रैल 2014 के दैनिक जागरण के पहले पृष्ठ की मुख्य खबर थी- ‘‘केजरीवाल को फिर थप्पड़ मारा’’। इस मुख्य खबर की मुख्य क्रिया है-- ‘मारना’ जिसका साहचर्य है किसी ऐसी वस्तु से या काल्पनिक क्रिया से जिसका प्रयोग हिंसा के या हिंसक क्रिया के औज़ार के रूप में हुआ है और इस स्थिति की वाचक क्रियाओं के पूर्वपद संज्ञा के रूप में चाँटा,   ईंट,   पत्थर,   जूता,   चप्पल आदि वस्तु-वाचक संज्ञाओं का प्रयोग हो सकता है,   पर यहीं ‘मारना’ क्रिया के साथ यदि ‘बाजी’ लग जाए और क्रिया हो जाए ‘बाजी मारना’,   हाथ’ लग जाए और क्रिया हो जाए ‘हाथ मारना’, तो ‘मारना’ के संयोग के होने के बावजूद ‘बाजी मारना’ और ‘हाथ मारना’ क्रियाएँ और ‘थप्पड़ मारना’ और ‘चाँटा मारना’ जैसी क्रियाएँ नहीं हैं,   क्योंकि ‘बाजी मारना’ और ‘हाथ मारना’ ये दोनों क्रियाएँ सीधे ‘बाजी’ और ‘हाथ’ के अर्थ को नहीं कहतीं,  बल्कि ये तीसरे अर्थ को कह रही होती हैं, जिसका अर्थ है ‘जीत लेना’ जहाँ क्रिया के घटक अपना मूल अर्थ नहीं कहते और अपने से भिन्न किसी तीसरे अर्थ को कहते हैं, ऐसी क्रियाएँ मुहावरात्मक क्रियाएँ होती है, इनके प्रयोग को सीखना वस्तुतः भाषा के सतही स्तर से कुछ-और उठकर सहज प्रवृत्ति रूप प्रकृति को सीखने-जैसा होता है और ऐसे प्रयोग करना यदि आपको आ गया, तो समझ लीजिए कि आप भाषा में रमने लग गए। भाव यह है कि ‘थप्पड़ मारना’ और ‘हाथ मारना’ क्रियाओं के प्रयोग के अंतर को समझ कर यदि आपने उनका प्रयोग करना सीख लिया, तो आपने भाषा का प्राथमिक स्तर ही नहीं सीखा, बल्कि आपने भाषा का उच्च स्तर भी सीख लिया है। हर भाषा में ऐसी मुहावरात्मक क्रियाएँ भरी पड़ी होती हैं और ऐसे प्रयोग में ही भाषा का चमत्कार रहता है।
दैनिक जागरण की ही दूसरी मुख्य ख़बर ‘‘मोदी का मुकाबला करेंगे अजय राय’’ के वाक्य की क्रिया है ‘मुकाबला करना’। यहाँ ‘मुकाबला करना’ का अर्थ है ‘‘के सामने चुनाव में प्रत्याशी के रूप में डटकर खड़ा होना’’ इस क्रिया के दो घटक हैं- एक घटक है-- ‘मुकाबला’ और दूसरा है-- ‘करना’ -इस प्रकार की क्रियाएँ संयुक्त क्रिया कहलाती हैं,   जिनका पहला घटक ‘संज्ञा’ होता है और दूसरा घटक ‘करना’ या होना’ आदि।
तीसरी मुख्य खबर है ‘‘जाली नोट मिलने की जाँच करेगी क्राइमब्रांच’’ की क्रिया है-- ‘जाँच करना’ यह क्रिया भी ‘मुकाबला करना’-जैसी क्रिया है और इसके भी दो घटक हैं-- ‘जाँच’ और ‘करना’। चूँकि पहला घटक ‘जाँच’ संज्ञा है और दूसरा घटक है ‘करना’। अतः यह भी संयुक्त क्रिया है। इसी अखबार की चौथी प्रमुख खबर है ‘‘आयोग सख्त, झुकीं ममता’’ इस खबर की क्रिया है--‘झुकीं’ इस क्रिया के भी अर्थ पर आप विचार करें,  तो आप पाएँगे कि सीधी खड़ी ममता ने शरीर को झुकाने की कोई क्रिया नहीं की, बल्कि ‘झुकीं’ का जो अर्थ सामने आ रहा है वह है-- ‘नरम पडना’ या ‘पीछे हटना’। यह अर्थ शरीर के झुकने के अर्थ से भिन्न है, इसलिए अन्य अर्थ के साथ संबंध होने के कारण यहाँ भी लक्ष्यार्थ है, जो ‘झुकीं’ के मुहावरात्मक रूप को प्रकट कर रहा है, पर इस मुहावरात्मक रूप की विशेषता यह है कि यह मुहावरात्मक अर्थ ‘सख्त’ पद के संसर्ग के कारण है, भाव यह है कि ‘झुकीं’ क्रिया यहाँ यद्यपि समापिका क्रिया है, पर इसका प्रयोग मुहावरात्मक है और यह मुहावरात्मकता सन्दर्भ के कारण पैदा हुई,   कुल मिलाकर मैं कहना यह चाहता हूँ कि मुहावरात्मक अर्थ को जानने के लिए हमें कई बार भाषा के भीतर रहने वाले संदर्भ पर और कई बार भाषा के बाहर घटने वाली परिस्थिति को ठीक से समझना होता है व जब हम उस परिस्थिति को ठीक से समझ पाते है, तभी क्रिया के मुहावरात्मक प्रयोग को भी ठीक से समझते हैं, और-फिर आगे चलकर वैसा प्रयोग करने भी लगते हैं। 
इसी चौथी खबर का उपवाक्य है- ‘‘तबादलों पर सी.एम. ने दी रज़ामन्दी’’ की क्रिया है- ‘रज़ामन्दी देना’ इस क्रिया की भी स्थिति लगभग ‘मुकाबला करना’-जैसी है अर्थात् इसके भी दो घटक हैं- ‘रजा़मन्दी’ और ‘देना’। जिनमें ‘रज़ामन्दी’ संज्ञा है और ‘देना’ क्रिया। ‘मुकाबला करना’ में करना से संयुक्त क्रिया बनी है और यहाँ देना से ऐसा ही एक प्रयोग है ‘रजा़मन्दी लेना’ भाव यह है कि कहीं संयुक्त क्रिया ‘करना’ और ‘होना’ से और वहीं ‘लेना’ और ‘देना’ से। ‘लेना’ और ‘देना’ से बनने वाली संयुक्त क्रियाओं में पूर्वपद संज्ञा रूप ही होता है, जो उक्त दोनों क्रियाओं में है।
सामासिक क्रिया
सामासिक क्रिया वह होती है, जो दो क्रियाओं के मिलने से बनती है। भाव यह है कि दोनों क्रियाएँ भाषा में अलग-अलग चलते रहते हुए भी किसी एक के लिए अपने को पूरी तरह समर्पित करते हुए या-तो पहले के चमत्कार-पूर्ण अर्थ में,   या-फिर दूसरे के चमत्कार-पूर्ण अर्थ में साथ-चलना स्वीकारती हैं। यह है क्रियाओं के साहचर्य का चमत्कार। जैसे- चलना और देना से बनने वाली सामासिक क्रिया ‘चल देना’,   खाना और लेना से बनने वाली सामासिक क्रिया ‘खा लेना’,   चलना और आना से बनने वाली- ‘चले आना’,   चलना और जाना से बनने वाली-‘चले जाना’,   दौड़ना और जाना से- ‘दौड़ जाना’,   उठाना और लाना से -‘उठा लाना’,   लेना और आना से बनने वाली- ‘ले आना’,   सोना और जाना से बनने वाली- ‘सो जाना’,   रोना और लेना से बनने वाली- ‘रो लेना’,   पीना और लेना से बनने वाली- ‘पी लेना’,   खाना और लेना से बनने वाली- ‘खा लेना’,   आदि-आदि। आप इन सामासिक क्रियाओं को देखें,   तो आप को तीन स्थितियाँ दिखाई पड़ेंगी- कहीं पहले पद की प्रधानता,   कहीं दूसरे पद की प्रधानता और कहीं पहले पद के अर्थ में चमत्कार,   ऐसे ही कहीं दूसरे पद के अर्थ में चमत्कार,   आदि-आदि। जहाँ पहले पद की प्रधानता होती है,   वहाँ दूसरा पद किसी विशेष स्थिति का बोध कराता है। ऐसे ही जहाँ दूसरे पद की प्रधानता होती है,   वहाँ पहला पद दूसरे पद वाली क्रिया से किसी विशेष स्थिति का बोध कराता है, इसे हमारी परंपरा में क्रियाओं की रंजकता अर्थात् क्रियाओं का सौन्दर्य कहा गया। भाव यह है कि कभी पहला पद ‘रंजक’ बनता है,   तो कभी दूसरा। जब पहला पद ‘रंजक’ बनता है,  तो वह दूसरे पद की क्रिया के सौंदर्य को निखारता है और जहाँ दूसरा पद ‘रंजक’ बनता है,   वहाँ पहले पद की क्रिया के सौन्दर्य को। अँग्रेजी में इसे ही ‘‘टेम्पोरल इफेक्ट ऑफ वर्ब्स’’ कहा गया है।
प्रथम पद-प्रधान क्रियाएँ- चल देना,  खा लेना,   दौड़ जाना,   चले जाना,   सो जाना,   रो लेना,   पी लेना,   खा लेना,   ठहर जाना,   लिख देना,   पढ़ लेना,   पकड़ा जाना,   आदि-आदि।
द्वितीय पद-प्रधान क्रियाएँ- चले आना,   उठा लाना,   ले आना,   घुमा लाना,   वापस लाना,   बुला लाना,   खरीद लाना,   छुड़ा लाना,  आदि-आदि।

                                                      प्रोफेसर एवं निदेशक
भाषा विद्यापीठ
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा
एवं
राष्ट्रीय संयोजक
भारतीय भाषा मंच, नई दिल्ली

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